Thursday , April 10 2025

पृथ्वी पर मिलते हैं तीन तरह के मनुष्य

यह प्रकृति त्रिगुणामयी है। अर्थात यह प्रकृति तीन गुणो से निर्मित है।
तीन गुण –सत्व, रजस और तमस
सत्व का मतलब है – सन्तुलन
रजस का मतलब है -गति
तमस का मतलब है – अवरोधक

इन्हीं तीन गुणों से मनुष्य का स्वभाव बनता है।इसलिेए हम कह सकते हैं कि इस पृथ्वी पर तीन ही प्रकार के मनुष्य हो सकते हैं। पहले नम्बर पर आते हैं सत्व गुणों से निर्मित मनुष्य।ऐसा मनुष्य जो रजस और तमस गुणों से ऊपर उठ गया है।या जिसने रजस और तमस में संतुलन बैठा लिया हो। उसमें सत्व के गुण आने लगते हैं मनुष्यता रूपी बीज खिलने लगता है। सत्व गुण को प्राप्त व्यक्ति में कौन से गुण निर्मित हो जाते हैं।
संयम आ जाता है ,विनम्रता प्रकट होने लगती है। प्रेम और करूणा से हृदय भरने लगता है।निष्कपट हो जाता है।निरहंकारिता आ जाती है। चित्त सरल व सहज हो जाता है। हृदय प्रवित्र हो जाता है। अहिंसा को उपलब्ध हो जाता है। मन में स्थिरता , शान्ती, आनन्द, ज्ञान, निर्भीकता, क्षमाशीलता, निष्पक्षता,और विवेक उत्पन्न हो जाता है। यह मनुष्य जाति को जोड़ने की बातें करेगा। इनके हर वाक्य में सार्थकता होगी। चेहरे पर प्रकाश की एक आभा झलकेगी। ऐसे चित्त वाले मनुष्य का हर कर्म पुण्य बन जाता है।

दूसरे नम्बर पर आते हैं रजस से युक्त गुणों से निर्मित मनुष्य। रजस से युक्त व्यक्ति में जो गुण निर्मित होते हैं। रजस अर्थात गति ,मनुष्य गति के लिये कदम तभी बढ़ाता है जब उसमें आकांक्षाएं, कुछ पाने की , महत्वाकांक्षाएं कुछ बनने की,उत्पन्न होती है।अपनी महत्वाकांक्षाओं को पुरा करने के लिये यह व्यक्ति दूसरों की निन्दा , छल ,कपट, हिसां से भी पीछे नहीं हटेगा। और ऐसा करने से इसका चित्त जटिल होता चला जायेगा। और जब चित्त जटिल होने लगे तो समझ लो अंहकार आने लगा।और बुद्धि ने लालच की दौड़ पैदा कर दी।चित्त अशान्त होगा, इसके चित्त की अशान्ती समाज को भी अशान्त कर देगी,। भय से भरा हुआ ,विचार से भरा हुआ,दंम्भ ,कुटनीति, धूर्तता, जालसाजी, असत्य भाषण करने वाला ,ऐसे अनेक गुण रजस से युक्त व्यक्ति के आभूषण होते हैं। इसके हर कर्म के पीछे एक लालच होगा।

तीसरे नम्बर पर आते हैं तमस गुणों से युक्त व्यक्ति। तमस से युक्त व्यक्ति में निम्न गुण पाते जाते हैं। जैसा कि तमस दर्शाता है अवरोधक को अर्थात रूकावट पैदा करने वाला, रूकावट वहीं पैदा करेगा जिसमें आलस्य भला हो, अंधकार हो जीवन में, घृणा भरी हो चित्त में, भयभीत हो, चित्त पर एक तरह का भार हो। क्रुरता भरी हो चित्त में, चित्त की जटिलता के कारण यह अनुयायी होता है दूसरों का। स्वार्थी,एक तरह से इसको पशुता से भरे हुए चित्त के समान समझ सकते हैं।ऐसे चित्त से भरे हुए व्यक्ति का कोई भी कर्म पुण्य नहीं हो सकता है। इसकी की तुलना दुर्योधन और कंस से की जा सकती है।

जिस प्रकार इस पृथ्वी पर तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं उसी प्रकार उनकी श्रद्धाएं भी तीन प्रकार की होती है।तीन प्रकार के ही दान होते हैं। और तीन प्रकार के ही कर्म होते हैं।घृणा से भरा हुआ चित्त केवल और केवल हिसां और विनाश को पैदा करता है।ऐसे ही लोगों के कारण युद्ध होते हैं।

इस देश का दुर्भाग्य यही है कि हमने दो नम्बर और तीन नम्बर के व्यक्तियों को सर्वोच्च पद बैठा दिया है।चाहे वो राजनीति हो, ज्यूडीसरी हो,या नौकरशाही, यह देश को उत्थान के मार्ग पर नहीं पतन के मार्ग पर ले जायेगें। बाहर से इनके मुखोटे मत देखो इनके चित्त में भरी हुई उन ऊर्जाओं को देखो जो इनके आचरण में झलक रही है। आज जो देश के संस्थानों की गरिमा गिर रही है उसका कारण भी यही है कि वहां पर एक नम्बर के व्यक्तियों अर्थात सत्व गुण से युक्त व्यक्तियों की कमी है।

मनुष्य आज भी महाभारत के युद्ध में खड़ा है,द्वंद्व में खड़ा है। महाभारत का युद्ध समाप्त नहीं हुआ है उसके अन्दर बराबर युद्ध चल रहा है।प्रकाश और अंधकार का। प्रेम और घृणा का। अंहकार और विनम्रता का। अच्छाई और बुराई का। कुविचारों और सद्वविचारो में बराबर युद्ध चल रहा है। यह द्वंद्व मनुष्य की अनेक सतहों से फूट रहा है। यह द्वंद्व मनुष्य के कण कण में छिपा है।प्रत्येक व्यक्ति कुरूक्षेत्र में ही खड़ा है। महाभारत कभी हुआ और समाप्त हो गया ऐसा नहीं है।महाभारत जारी है हर मनुष्य के साथ पैदा हो रहा है। इसलिेए कुरूक्षेत्र को गीता में धर्मक्षेत्र कहा गया है। क्योंकि वहां निर्णय होता है । धर्म और अधर्म का।

मनुष्य का चित्त भी वही कुरूक्षेत्र है जहां भीतर निर्णय होना है धर्म और अधर्म का। भीतर सेनाएं सजी खड़ी है प्रेम और घृणा की, और चिन्ता के बड़े कारण है ,क्योंकि घृणा के पक्ष में बड़ी फौजें है।घृणा के पक्ष में बड़ी शक्तियां खड़ी है। भीतर सेनाएं बटी खड़ी है। भीतर कुछ उबल रहा है ,क्या होगा इसका परिणाम,क्या होगी इसकी निष्पत्ति इसकी चिन्ता है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कुछ निर्णायक घटना घटने को है।

महाभारत में भी भगवान कृष्ण की सारी फौजें कौरवों के साथ थी,केवल कृष्ण निहत्थे पांडवों के साथ थे। ऐसी ही हालत आज संसार की है। संसार की सारी शक्तियां अंधेरे के पक्ष में खड़ी है। घृणा के पक्ष में खड़ी है। केवल और केवल परमात्मा भर तुम्हारे पक्ष में है वो भी निहत्थे। जो प्रेम के साथ खड़े हैं जिनके हृदय में करूणा है परमात्मा उनके साथ है।जीत होगी की हार होगी भरोसा करना बड़ा ही मुश्किल लगता है।

मनुष्य के भीतर भी परमात्मा ने प्रेम की रस संभाल रखी है ,सामने घृणा की सेनाएं सजी खड़ी है बड़ा विराट आयोजन है उनका। प्रेम के विरोध में, विनम्रता के विरोध में, अच्छाई के विरोध में करूणा के विरोध में, यह द्वंद्व समाप्त हो सकता है, बस ऊर्जाओं को पहचान लो कि तुम किसके साथ खड़े हो फैसला अभी हो जायेगा विजय अभी मिल जायेगी।युद्ध का निर्णय अभी हो जायेगा। इसके लिये साहस चाहिये। दृढ़ता चाहिये।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com