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योगी सरकार का कामकाज “आप” पर पड़ रहा भारी

  • सात साल से “आप” यूपी में सक्रिय पर नहीं बना सकी पहचान
  • अखिलेश की बैशाखी की मदद से यूपी में पैर जमाने के प्रयास में आप
  • योगी सरकार के कामकाज के नाते “आप” को नहीं मिल रही कोई गुंजाइश

लखनऊ । उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा कराए गए विकास कार्य आम आदमी पार्टी (आप) पर भारी पड़ रहे हैं। बीते सात सालों से “आप” उत्तर प्रदेश में सक्रिय है पर राजनीतिक रूप से बेहद जागरूक इस प्रदेश में अब तक आप अपनी कोई पहचान नहीं बना सकी है। लोक लुभावन घोषणाओं के बलबूते इस दल के नेताओं ने यूपी में अपने पैर फैलाने के कई प्रयास भी किया, परन्तु जनता को वह लुभा नहीं पाए। ऐसे में यूपी के विधानसभा चुनावों में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके आप के नेताओं ने समाजवादी पार्टी (सपा) का साथ हासिल करने की मुहिम शुरू की है। इसके तहत आप के यूपी प्रभारी संजय सिंह दो माह में तीसरी बार अखिलेश यादव से मिले हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव से संजय सिंह की हुई इन मुलाकातों को राजनीतिक जानकार अवसरवादी राजनीति बता रहे हैं।
 
यूपी की राजनीति के हर दांवपेच से परिचित बीबीसी के पत्रकार रहे रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में आप का कोई इम्पैक्ट नहीं हैं। राजनीतिक रूप से जागरूक विशाल उत्तर प्रदेश में एनजीओ में कार्यरत लोगों के भरोसे आप अपनी कोई पहचान बना भी नहीं सकी है। आप को यूपी के चुनावों में गंभीर दावेदार नहीं माना जा रहा है। जबकि यह पार्टी सात साल से यूपी में सक्रिय है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इस पार्टी के अन्य नेताओं ने भी बड़े नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन प्रदेश की जनता के दिलों में वह जगह नहीं बना सके। अभी भी दिल्ली से सटा उत्तर प्रदेश ‘आप’ के रडार से दूर ही लगता है। जबकि मुख्यमंत्री बनने से पहले तक अरविंद केजरीवाल ग़ाज़ियाबाद में ही पत्नी के सरकारी क्वार्टर में रहते थे। ऐसे में अब सियासी हलकों में यह सवाल उभरता रहता है कि यूपी और ‘आप’ के बीच ये दूरियां क्यों है? और इसके पीछे क्या मजबूरियां हैं? यूपी के राजनीतिक जानकार इसके दो कारण बताते हैं। पहला तो ये कि ‘आप’ ने यूपी की जनता से जुड़ने के लिए सत्तारूढ़ दलों पर आरोप लगाने की राजनीति की। दूसरा यूपी में अपना आधार बढ़ाने के आप नेताओं को जनता के बीच जाने के बजाए न्यूज चैनलों एवं अखबारों में विज्ञापन पर खर्चा करना ज्यादा जरूरी लगा।

इसके चलते ही आप यूपी में कोई जगह नहीं बना सकी। प्रदेश की जनता ने आप नेताओं की इस मुहिम को नकार दिया। जबकि इसी तरह की राजनीति करते हुए आप के नेताओं ने दिल्ली के बाद पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में आप का इम्पैक्ट बनाया है। आप का यूपी में इम्पैक्ट क्यों नहीं है? इस संबंध में रामदत्त कहते हैं कि एक क्षेत्रीय दल का दूसरे राज्य में प्रभाव कम ही दिखता है, आप के साथ भी यही दिक्कत है। यूपी में आप का कोई सोशल बेस नहीं है। यूपी में जात पात और विकास की राजनीति का बोलबाला रहा है। यह जानते हुए भी अरविंद केजरीवाल ने यूपी में पार्टी का फैलाव करने के ध्यान नहीं केंद्रित किया। उन्होंने सिर्फ छह माह पहले पार्टी के सांसद संजय सिंह को यूपी का प्रभारी बनाकर भेज दिया। यहां संजय सिंह ने पार्टी की नीति के तहत सत्तारूढ़ सरकार की योजनाओं को लेकर हवा हवाई आरोप लगाकर अखबार में खबरे छपवाने को महत्व दिया। जनता के बीच कार्य करने और पार्टी के संगठन को बढ़ाने की योजनाएं नहीं बनाई। जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी की जनता को जनउपयोगी योजनाओं की का लाभ मुहैया कराने में जुटे रहे। कोरोना संकट के समय लोगों के इलाज का प्रबंध किया। लोगों को फ्री राशन मिले, गरीबों को आवास तथा शौचालय योजना का लाभ मिले, उज्ज्वला योजना का लाभ गरीब परिवारों को मिले, यूपी में अधिक से अधिक निवेश हो, नए एयरपोर्ट, विश्वविद्यालय और मेडिकल कालेज बने इस पर ध्यान दिया। नोएडा में जेवर अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के निर्माण को लेकर गुरूवार को हो रहा शिलान्यास इसका सबसे बड़ा सबूत है। ऐसा कोई बड़ा कार्य अभी तक दिल्ली की अरविंद केजरीवाल ने नहीं किया है।

सरकार द्वारा इस तरह के कराए गए तमाम कार्यों के चलते ही प्रदेश की जनता ने आप जैसे दलों को तवज्जो नहीं दी। हालांकि यूपी में पार्टी का विस्तार करने की मंशा के तहत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अयोध्या गए। भगवान रामलला के मंदिर में माथा टेका। फिर भी यूपी विधानसभा चुनावों की 100 सीटों पर भी आप को अच्छे प्रत्याशी मिलना मुश्किल लगा तो संजय सिंह ने सपा का दरवाजा खटखटा दिया। बुधवार को वह तीसरी बार अखिलेश यादव से मिलने उनके घर पहुंच गए। अखिलेश यादव प्रदेश में छोटे दलों का एक गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस गठबंधन में आप को भी जगह मिल जाए, संजय सिंह का यह प्रयास हैं। ताकि आप भी सपा के सहयोग से आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी मौजूदगी को ठीक से दर्ज करा सके। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला इस मुलाकात इस मुलाक़ात को लेकर कहते हैं कि आप को यूपी की विधानसभा में एक भी सीट पर जीत अब तक नहीं मिली है। सपा के साथ जुड़ने से उन्हें एक दो सीट पर जीत हासिल हो सकती है। ये सीटे हासिल करने के लिए ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कई लोक लुभावन घोषणाएं की हैं और भी बड़ी बड़ी बाते उन्होंने की है। उनकी तमाम घोषणाओं का सच यूपी के लोग जानते हैं। उन्हें पता है कि यूपी में रोजगार दिलाने का दावा करने वाले केजरीवाल ने 426 लोगों को ही सरकारी नौकरी छह साल में दी है जबकि यूपी सरकार ने साढ़े चार लाख से अधिक सरकारी नौकरी नवजवानों को दी हैं। योगी सरकार के यही दमदार काम के आप पर भारी पद रहा है। और आप के नेता अब सपा का साथ हासिल करने में जुटे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी अपने भतीजे का साथ पाने की जुगत में लगे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव अब शिवपाल के साथ खड़े होंगे या अरविंद केजरीवाल के साथ, यह जल्दी ही पता चलेगा।

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